संस्कृत भाषा में बाह्य का अर्थ “बाहर” से होता है। बाह्य प्राणायाम को अंग्रेजी में External Retention भी कहा जाता है। Bahya Pranayama का अभ्यास करने से मूलाधार चक्र की शक्ति जागृत होती है।
योग और प्राणायाम में 3 प्रमुख क्रियाएं होती हैं पूरक, रेचक और कुंभक। श्वास को अंदर भरने की क्रिया को पूरक और श्वास को बाहर छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। शरीर के अंदर भरी हुई श्वास को अंदर ही रोकने की क्रिया को “आंतरिक कुंभक” कहते हैं और शरीर के बाहर का श्वास बाहर रोकने की क्रिया को “बाह्य कुंभक” कहते हैं। बाह्य प्राणायाम में बाह्य कुंभक लगाया जाता है।
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बाह्य प्राणायाम करने का तरीका – Bahya Pranayama Steps in Hindi
- बाह्य प्राणायाम करने से पहले किसी साफ और शांत जगह पर योगा मैट बिछा ले।
- अब पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं।
- लंबी गहरी सांस लें और फेफड़ों और पेट में भरी हुई सांस को बाहर छोड़ें साथ ही साथ मलद्वार को सिकोड़े (मूल बंध) और पेट को अंदर की ओर खींचे (उड्डयन बंध) और सिर को झुका कर ठोड़ी को छाती से सटा दे।(जलंदर बंध)
- यह तीनों बंध लगाने के बाद स्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोक कर रखें।
- जब सांस लेने की इच्छा हो तो तीनों बंधो को हटाते हुए धीरे-धीरे सांस ले सकते हैं।
- इस प्रकार इस प्रक्रिया को तीन से चार बार दोहरा सकते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे इसकी समय सीमा को बढ़ाया भी जा सकता है।
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बाह्य प्राणायाम के फायदे – Bahya Pranayama Benefits in Hindi
बाह्य प्राणायाम को अगर नियमित रूप से अभ्यास किया जाए तो शरीर को कई बेहतरीन लाभ मिल सकते हैं।

- इसका अभ्यास करने से मूत्र मार्ग से संबंधित सारे रोग स्वताः समाप्त हो जाते हैं।
- बाह्य प्राणायाम के अभ्यास से पेट के समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है। पेट में बन रही गैस और एसिडिटी की समस्या ठीक हो जाती है।
- डायबिटीज में रोगी के खून में शुगर लेवल बढ़ जाता है जिससे उसे काफी परेशानी होती है। इसलिए मधुमेह से पीड़ित रोगियों को बाह्य प्राणायाम का अभ्यास जरूर करना चाहिए।
- इसके अभ्यास से पेट, जिगर, गुर्दा और गर्भाशय जैसे आंतरिक अंगों की रक्त आपूर्ति बढ़ती है जिससे इन अंगों से संबंधित विभिन्न बीमारियों को नियंत्रित किया भी किया जा सकता है।
- बाह्य प्राणायाम का अभ्यास करके आप अपने पाचन तंत्र को मजबूत बना सकते हैं।
- हर्निया से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह प्राणायाम बेहद फायदेमंद होता है। अगर आप इसका अभ्यास रोजाना करते हैं तो हर्निया की समस्या कभी नहीं होगी।
- एकाग्रता बढ़ाने के लिए बाह्य प्राणायाम को काफी कारगर माना गया है। अगर आपका ध्यान एक जगह स्थिर नहीं रहता है या किसी काम में मन नहीं लगता है तो आप को बाह्य प्राणायाम का अभ्यास शुरू कर देना चाहिए इससे एकाग्रता में विकास होगा और किसी भी काम में मन लगेगा।
बाह्य प्राणायाम करते समय सावधानियां- Bahya Pranayama Precaution in Hindi
किसी भी योग और प्राणायाम को करने से पहले उसकी सावधानियों को अच्छे से जान लेना चाहिए ताकि भविष्य में किसी समस्या का सामना ना करना पड़े..
- बाह्य प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले आपका पेट खाली होना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं या उनकी मासिक धर्म (पीरियड्स) के समय भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- हाई ब्लड प्रेशर के मरीज को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- ह्रदय, पेट और सांस से संबंधित रोगियों को बाह्य प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
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बाह्य प्राणायाम में कितने बंध होते है?
सुखासन, सिद्धासन, या पद्मासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते हैं जिनमे मूल बंध, जलंदर बंध और उड्डयन बंध होता है।
बह्या प्राणायाम क्या है?
श्वास अंदर भरने की क्रिया को पूरक और श्वास बाहर छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। शरीर के अंदर भरी हुई श्वास को अंदर ही रोकने की क्रिया को “आंतरिक कुंभक” कहते हैं और शरीर के बाहर का श्वास बाहर रोकने की क्रिया को “बाह्य कुंभक” कहते हैं। बाह्य प्राणायाम में बाह्य कुंभक लगाया जाता है।
प्राणायाम के तीन पहलू कौन से है?
पूरक:- नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की प्रक्रिया को पूरक कहते हैं।
कुम्भक:- अंदर भरी हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।
रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की प्रक्रिया को रेचक कहते हैं।
बाह्य प्राणायाम का वीडियो – Bahya Pranayama Video
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